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भाषायी कौशल विकास

  • वर्तमान में उच्च शिक्षा की निराशाजनक स्थिति के विश्लेषण से यह ज्ञात होता है कि शिक्षण-पद्धति छात्र- केंद्रित नहीं है। विद्यार्थी-केंद्रित शिक्षण-पद्धति तभी मज़बूत हो सकती है जब विद्यार्थी स्वयं अध्ययन में सक्षम हो सके। इसके विपरीत राजस्थान में विद्यार्थियों के पढ़ने और समझने का स्तर बेहद ही कमज़्ाोर स्थिति में है। इसलिए PCGE शिक्षकों के लिए प्रत्येक वर्ष भाषा-विकास संबंधी शिक्षक कार्यशालाओं की व्यवस्था करता है। इन कार्यशालाओं के माध्यम से शिक्षक एक वाक्य में मूल शब्दों और तकनीकी शब्दों को पहचानना सीखता है। वाक्य और पैराग्राफ के अर्थ की समझ को विकसित करता है और इस प्रकार पूरे टॉपिक का विश्लेषण करने में सक्षम बनता है।
  • इस प्रक्रिया का मूल उद्देश्य विद्यार्थियों के पढ़ने, लिखने और बोलने के कौशल को विकसित करना है। विद्यार्थियों की पाठ्यपुस्तक को पूर्णत: समझने में यह प्रक्रिया मदद करती है। इस कौशल से विद्यार्थी मूल शब्द (Keyword) को पहचानता है। उन शब्दों की ताकत से अपनी लेखन-कला में दक्षता हासिल करता है। साथ ही अच्छी भाषा के साथ बोलने और लिखने में गुणवत्ता प्राप्त करता है।
  • इस प्रकार की अभ्यास-प्रक्रिया शिक्षकों में गहन अंतर्दृष्टि को विकसित करती है। यही अभ्यास की प्रक्रिया शिक्षक अपने विद्यार्थियों के साथ करता है। शिक्षकों एवं विद्यार्थियों के 360 डिग्री फीडबैक से शिक्षकों का एवं विद्यार्थियों का भाषा और पुस्तक के प्रति दृष्टिकोण में क्रांतिकारी परिवर्तन आया है। इसीलिए PCGE के सभी विद्यार्थी मानक (Standard) पुस्तकें खरीदते हैं और उन्हें नियमित पढ़ते हैं। सोचने, समझने की अपनी क्षमता में वृद्धि करते हैं।

दरअसल किसी भी शैक्षिक दृढ़ता के लिए मौलिक एवं मजबूत ढंग से सोचने-समझने की शक्ति और उसे प्रस्तुत करने के लिए संप्रेषण क्षमता की आवश्यकता है।